टैक्सोनॉमी (Taxonomy) क्या है?
टैक्सोनॉमी जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें जीवों का पहचानना (identification), वर्णन करना (description), नाम देना (nomenclature) और वर्गीकरण (classification) शामिल होता है। इसे सरल भाषा में कहें तो यह वह प्रक्रिया है जिसमें वैज्ञानिक पौधों और जानवरों को उनके लक्षणों के आधार पर अलग-अलग समूहों में रखते हैं।
यह पद्धति हमें जीवों को व्यवस्थित ढंग से समझने में मदद करती है। उदाहरण के लिए, यदि हम किसी पौधे की पहचान करते हैं, उसका वैज्ञानिक नाम बताते हैं और उसे किसी वर्ग (Class) या कुल (Family) में रखते हैं, तो हम टैक्सोनॉमी का प्रयोग कर रहे होते हैं।
- टैक्सोनॉमी को औपचारिक रूप से कार्ल लीनियस (Carl Linnaeus, 1750) ने व्यवस्थित किया।
 - इसी कारण लीनियस को “Father of Taxonomy” कहा जाता है।
 - लीनियस ने द्विनाम पद्धति (Binomial Nomenclature) दी, जिसमें हर जीव का नाम दो भागों में होता है – Genus और Species (जैसे Homo sapiens = मानव)।
 

आज तक वैज्ञानिकों ने लगभग 18 लाख प्रजातियों का नामकरण कर दिया है, लेकिन माना जाता है कि धरती पर कुल प्रजातियों की संख्या 1 करोड़ से भी अधिक हो सकती है!
सिस्टमैटिक्स (Systematics) क्या है?
सिस्टमैटिक्स जीवों की विविधता (diversity), प्रकार (kinds) और उनके बीच के विकासीय सम्बन्ध (evolutionary relationships) का अध्ययन है। यह केवल यह नहीं देखता कि कौन-सा जीव किस समूह में है, बल्कि यह भी देखता है कि उसका अतीत क्या था और भविष्य में उसका विकास किस तरह हुआ।
- सिस्टमैटिक्स जीवों के बीच समानताओं और भिन्नताओं को देखकर उनके आपसी रिश्ते और विकासीय क्रम (phylogeny) को समझने में मदद करता है।
 - इसमें आणविक जीवविज्ञान (molecular biology), जीवाश्म विज्ञान (paleontology), और अनुवांशिकी (genetics) का भी सहारा लिया जाता है।
 - सिस्टमैटिक्स से हमें पता चलता है कि जीव किस पर्यावरण में कैसे ढले और समय के साथ उनके रूप-रंग व कार्य कैसे बदले।
 

उदाहरण: घोड़े का विकास (Evolution of Horse) एक क्लासिक केस है जिसे systematics के जरिए समझा गया – छोटे आकार के Eohippus से आधुनिक बड़े घोड़े तक।
टैक्सोनॉमी बनाम सिस्टमैटिक्स (Taxonomy vs Systematics)
| पहलू | टैक्सोनॉमी (Taxonomy) | सिस्टमैटिक्स (Systematics) | 
|---|---|---|
| परिभाषा | पहचान, नामकरण और वर्गीकरण का अध्ययन | विविधता और विकासीय संबंधों का अध्ययन | 
| मुख्य कार्य | जीवों का नाम और पहचान तय करना | जीवों का आपसी संबंध और विकासीय इतिहास समझना | 
| विकासीय इतिहास | विकासीय इतिहास पर ध्यान नहीं देता | विकासीय इतिहास को गहराई से देखता है | 
| पर्यावरणीय प्रभाव | पर्यावरण की भूमिका सीधी नहीं | पर्यावरण की स्थिति सीधे असर डालती है | 
| परिवर्तनशीलता | समय के साथ नाम या वर्ग बदल सकते हैं | विकासीय इतिहास स्थायी रहता है | 
| उदाहरण | गुलाब का वैज्ञानिक नाम Rosa indica रखना | यह अध्ययन करना कि गुलाब किस पूर्वज से विकसित हुआ और किन पौधों से जुड़ा है | 

टैक्सोनॉमी और सिस्टमैटिक्स का महत्व
- जीवों को व्यवस्थित करना: बिना वर्गीकरण के जीवों की अनगिनत प्रजातियों को समझना असंभव होता।
 - वैज्ञानिक संचार आसान बनाना: वैज्ञानिक नाम दुनियाभर के शोधकर्ताओं को एक साझा भाषा देते हैं।
 - जैव विविधता की रक्षा: किस जीव का किससे रिश्ता है, यह जानकर हम उनके संरक्षण के बेहतर उपाय कर सकते हैं।
 - विकासीय ज्ञान: systematics हमें यह सिखाता है कि जीवन समय के साथ कैसे बदला और धरती पर नई प्रजातियाँ कैसे उभरीं।
 
छात्रों के लिए आसान याद रखने की ट्रिक
- Taxonomy = नामकरण और पहचान (Who is this?)
 - Systematics = विकासीय रिश्ता और विविधता (How are they related and evolved?)
 - टैक्सोनॉमी को शुरू में सिर्फ़ पौधों और जानवरों के लिए बनाया गया था, लेकिन अब इसे बैक्टीरिया, वायरस और यहाँ तक कि जीवाश्म प्रजातियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
 - आधुनिक Systematics DNA सीक्वेंस की तुलना करके यह भी बता सकता है कि इंसान और चिंपांज़ी का जीनोम लगभग 98% समान है।
 
वर्गिकी व जातिव्रत्त (Taxonomy and Phylogeny)
टैक्सोनॉमी (Taxonomy) जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें जीवों की पहचान, उनका नामकरण, वर्णन और वर्गीकरण किया जाता है। इसे सरल भाषा में समझें तो यह वह विज्ञान है जो जीवों को उनके लक्षणों के आधार पर सही नाम और स्थान देता है। उदाहरण के लिए जब हम इंसान को Homo sapiens, आम को Mangifera indica या शेर को Panthera leo कहते हैं, तो हम टैक्सोनॉमी का ही उपयोग कर रहे होते हैं। टैक्सोनॉमी की सबसे बड़ी देन कार्ल लीनियस की द्विनाम पद्धति (Binomial Nomenclature) है, जिसमें हर जीव का नाम दो हिस्सों में होता है – पहला वंश (Genus) और दूसरा प्रजाति (Species)। यह पद्धति जीवों को पहचानने, व्यवस्थित करने और पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए एक समान भाषा बनाने में मदद करती है।
इसके विपरीत, फाइलोजनी (Phylogeny) जीवों के विकासीय इतिहास और उनके आपसी सम्बन्धों का अध्ययन है। यह केवल यह नहीं बताती कि कोई जीव कौन है, बल्कि यह भी बताती है कि वह कहाँ से आया और समय के साथ उसमें क्या-क्या परिवर्तन हुए। फाइलोजनी को समझने के लिए वैज्ञानिक जीवाश्म, DNA और RNA अनुक्रम तथा प्रोटीन की तुलना करते हैं। उदाहरण के लिए पक्षियों का अध्ययन करने से पता चला कि वे प्राचीन सरीसृपों यानी डायनासोरों से विकसित हुए हैं। इसी तरह घोड़े का विकास छोटे आकार के Eohippus से शुरू होकर आधुनिक बड़े घोड़े Equus तक पहुँचा। मनुष्य और चिंपैंज़ी का DNA लगभग 98% समान है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि दोनों का कोई समान पूर्वज रहा होगा।
सरल शब्दों में कहा जाए तो टैक्सोनॉमी यह सवाल पूछती है कि “यह जीव कौन है?” जबकि फाइलोजनी यह जानने की कोशिश करती है कि “यह जीव कहाँ से आया और कैसे बदला?” दोनों का उद्देश्य अलग होते हुए भी एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। टैक्सोनॉमी हमें जीवों की पहचान और वर्ग देती है, जबकि फाइलोजनी हमें उनके विकास और रिश्तों का इतिहास बताती है। यही कारण है कि जीव विज्ञान को समझने के लिए इन दोनों का अध्ययन साथ-साथ किया जाता है।
प्रजाति (Species) की अवधारणा
प्रजाति (Species) जीव विज्ञान की मूलभूत इकाई है। इसे सरल भाषा में ऐसे समझा जा सकता है कि यह उन जीवों का समूह है जिनकी संरचना (morphology), शरीरक्रिया (physiology) और आनुवंशिकी (genetics) आपस में इतनी समान होती है कि वे आपस में प्रजनन करके उपजाऊ संतान (fertile offspring) पैदा कर सकते हैं।
प्रजाति (Species) की महत्वपूर्ण अवधारणाएँ
जीव विज्ञान में प्रजाति की कोई एक सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है। समय-समय पर वैज्ञानिकों ने अलग-अलग दृष्टिकोण से प्रजाति की परिभाषाएँ दी हैं। नीचे चार प्रमुख अवधारणाएँ दी जा रही हैं।
1. प्रकारिक प्रजाति अवधारणा (Typological Species Concept)
इस अवधारणा को अरस्तू और प्लेटो ने प्रस्तुत किया। इसमें यह माना गया कि पृथ्वी पर जीवों की केवल निश्चित किस्में (fixed types) मौजूद हैं और इनका आपस में कोई संबंध नहीं है। इस विचार के अनुसार, प्रत्येक जीव की पहचान केवल उसकी आकृति और संरचना से की जाती है। बाद में Cain (1954, 1956) ने इसे Morphospecies Concept कहा।
उदाहरण: गुलाब और गेंदा को केवल उनकी आकृति और संरचना के आधार पर अलग-अलग प्रजाति माना जाता है।
2. नामवाद प्रजाति अवधारणा (Nominalistic Species Concept)
यह अवधारणा Occam और उसके अनुयायियों ने दी। इसमें कहा गया कि प्रजाति प्रकृति में वास्तविक रूप से मौजूद नहीं है, बल्कि यह मनुष्य द्वारा बनाई गई एक सुविधा मात्र है। प्रकृति केवल individual जीवों को जन्म देती है, लेकिन अध्ययन की सुविधा के लिए वैज्ञानिकों ने उन्हें प्रजातियों में बाँट दिया। यह विचार 18वीं शताब्दी में फ्रांस में लोकप्रिय था और आज भी कुछ वनस्पति वैज्ञानिक इसका प्रयोग करते हैं।
उदाहरण: जंगल में हजारों गुलाब के पौधे केवल individuals हैं, लेकिन मनुष्य ने उन्हें मिलाकर Rosa indica नामक प्रजाति बना दी है।
3. जैविक प्रजाति अवधारणा (Biological Species Concept)
इसे सबसे पहले K. Jordan ने 1905 में प्रस्तुत किया और बाद में Ernst Mayr (1940) ने इसे विकसित किया। इस अवधारणा के अनुसार, प्रजाति वह प्राकृतिक समूह है जिसके सदस्य आपस में प्रजनन कर सकते हैं और उनकी संतानें उपजाऊ होती हैं। साथ ही यह समूह अन्य समूहों से प्रजनन की दृष्टि से अलग-थलग रहता है। इसमें प्रजाति को प्रजनन समुदाय (reproductive community), पारिस्थितिक इकाई (ecological unit) और आनुवंशिक इकाई (genetic unit) माना गया।
उदाहरण: शेर और शेरनी आपस में मिलकर उपजाऊ शावक पैदा कर सकते हैं, इसलिए वे एक ही प्रजाति हैं। लेकिन घोड़ा और गधा आपस में संतान (खच्चर) तो पैदा कर सकते हैं, लेकिन वह बाँझ होती है, इसलिए वे अलग-अलग प्रजातियाँ हैं।
4. विकासीय प्रजाति अवधारणा (Evolutionary Species Concept
इस अवधारणा को Simpson (1961) और बाद में Wiley (1978) ने परिभाषित किया। इसमें कहा गया कि प्रजाति एक स्वतंत्र वंशावली (lineage) होती है, जिसका अपना विशिष्ट विकासीय मार्ग, प्रवृत्तियाँ और ऐतिहासिक पहचान होती है। यह अवधारणा उन जीवों और जीवाश्मों के अध्ययन में अधिक उपयोगी है जिनमें प्रजनन की जानकारी नहीं मिल पाती।
उदाहरण: घोड़े का विकास – छोटे Eohippus से लेकर आधुनिक Equus तक – evolutionary lineage का उदाहरण है।
प्रजाति की महत्वपूर्ण अवधारणाएँ – तुलना सारणी (Comparison Table)
| अवधारणा | परिभाषा / मुख्य विचार | प्रमुख समर्थक | विशेषता | उदाहरण | 
|---|---|---|---|---|
| प्रकारिक प्रजाति अवधारणा (Typological Concept / Morphospecies) | प्रजाति को निश्चित प्रकार माना गया है। जीवों की पहचान केवल आकृति और संरचना से होती है। | अरस्तू, प्लेटो, Cain (1954, 1956) | Morphology पर आधारित, सभी सदस्य एक जैसे | गुलाब और गेंदा केवल आकृति के आधार पर अलग प्रजाति | 
| नामवाद प्रजाति अवधारणा (Nominalistic Concept) | प्रजाति प्रकृति में वास्तविक रूप से नहीं होती, यह केवल मनुष्य की बनाई कल्पना है। | Occam और अनुयायी | प्रजाति = केवल वैज्ञानिक सुविधा के लिए | हजारों गुलाब पौधे = individual, जिन्हें मनुष्य ने मिलाकर Rosa indica कहा | 
| जैविक प्रजाति अवधारणा (Biological Concept) | प्रजाति वह समूह है जिसके सदस्य आपस में प्रजनन कर सकते हैं और उपजाऊ संतान पैदा कर सकते हैं। | K. Jordan (1905), Ernst Mayr (1940) | Reproductive isolation पर आधारित | शेर और शेरनी = एक प्रजाति; घोड़ा + गधा = बाँझ खच्चर, इसलिए अलग प्रजाति | 
| विकासीय प्रजाति अवधारणा (Evolutionary Concept) | प्रजाति एक स्वतंत्र वंशावली (lineage) है, जिसका अपना विकासीय मार्ग और इतिहास होता है। | Simpson (1961), Wiley (1978) | Evolutionary history और lineage पर आधारित | घोड़े का विकास: Eohippus → Equus | 
टैक्सोन (Taxon)
जीव विज्ञान में जब भी हम जीवों का वर्गीकरण करते हैं, तो हमें उन्हें कुछ निश्चित समूहों में रखना पड़ता है। ऐसे प्रत्येक समूह को टैक्सोन (Taxon) कहा जाता है। टैक्सोन एक लचीली इकाई है क्योंकि यह किसी भी स्तर पर हो सकता है – चाहे वह प्रजाति (species) हो, वंश (genus) हो या वर्ग (class)। उदाहरण के लिए, Homo sapiens मनुष्य की प्रजाति का टैक्सोन है, Homo उसका वंश (genus) का टैक्सोन है और Mammalia स्तनधारियों का वर्ग (class) टैक्सोन है। टैक्सोन का मूल उद्देश्य जीवों को इस तरह से समूहित करना है कि उनके समान लक्षण स्पष्ट हो सकें और वे अन्य जीवों से अलग पहचान बना सकें।
टैक्सोन के अंतर्गत आने वाले जीव एक-दूसरे से समानताएँ साझा करते हैं, जैसे उनकी आकृति (morphology), शारीरिक रचना (anatomy), क्रियाएँ (physiology), अनुवांशिकी (genetics) और कभी-कभी उनका व्यवहार (behaviour) भी। टैक्सोन केवल एक जीव तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह कई जनसंख्याओं (populations) का संयुक्त समूह हो सकता है। उदाहरण के लिए, Mammalia टैक्सोन में मनुष्य, शेर, हाथी, कुत्ता, डॉल्फ़िन सभी शामिल हैं क्योंकि ये सभी स्तनधारी जीव हैं और इनमें दूध पिलाने की क्षमता, शरीर पर बाल और गर्म रक्त (warm-blooded nature) जैसी साझा विशेषताएँ पाई जाती हैं। इस प्रकार, टैक्सोन हमें जीवों को व्यवस्थित ढंग से नाम देने और वर्गीकृत करने का आधार प्रदान करता है।
श्रेणी (Category)
अब प्रश्न उठता है कि यदि टैक्सोन जीवों का समूह है, तो इसे किस ढाँचे या प्रणाली में रखा जाए? इसके लिए वैज्ञानिकों ने श्रेणी (Category) की अवधारणा दी। श्रेणी जीव विज्ञान की वर्गीकरण प्रणाली में वह निश्चित पदानुक्रमिक स्तर (fixed hierarchical rank) है जिसमें सभी टैक्सोन को रखा जाता है। यह एक तरह की सीढ़ी है जिसमें ऊपर से नीचे तक क्रमशः व्यापक से संकीर्ण स्तर आते हैं। उच्चतम स्तर पर राज्य (Kingdom) होता है और सबसे निचले स्तर पर प्रजाति (Species)। इनके बीच कई मध्यवर्ती श्रेणियाँ आती हैं, जैसे संघ (Phylum), वर्ग (Class), गण (Order), कुल (Family) और वंश (Genus)।
प्रत्येक श्रेणी का एक निश्चित महत्व है और जीवों को पहचानने तथा व्यवस्थित करने के लिए सभी श्रेणियाँ मिलकर काम करती हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य का वर्गीकरण करें तो उसे राज्य Animalia, संघ Chordata, वर्ग Mammalia, गण Primates, कुल Hominidae, वंश Homo और प्रजाति Homo sapiens में रखा जाता है। यहाँ हर स्तर एक श्रेणी (Category) है, और मनुष्य इन श्रेणियों में आने वाले टैक्सोन का हिस्सा है। श्रेणी की यही खूबी है कि यह हमें जीवों को छोटे-से-छोटे स्तर से लेकर सबसे व्यापक स्तर तक समझने में मदद करती है।
वर्गीकरण की पदानुक्रमिक स्तर (Hierarchical Levels of Classification)
टैक्सोनॉमी (Taxonomy) शब्द यूनानी भाषा (Greek) से लिया गया है। इसमें “taxis” का अर्थ है – व्यवस्था (arrangement) और “nomos” का अर्थ है – विधि (method)। जीव विज्ञान की यह शाखा जीवों को पहचानने, नाम देने और उनके लक्षणों के आधार पर समूहों में बाँटने का कार्य करती है। इस प्रक्रिया में बनाए गए समूह को टैक्सोन (Taxon) कहा जाता है।
जीवों को वर्गीकृत करने की पूरी प्रक्रिया को Taxonomic Hierarchy कहते हैं। इसमें जीवों को बड़े समूह से छोटे समूहों तक (Kingdom से लेकर Species तक) या छोटे से बड़े समूह तक व्यवस्थित किया जाता है। प्रत्येक स्तर को टैक्सोनॉमिक श्रेणी (Taxonomic Category / Rank) कहते हैं।
1. राज्य (Kingdom)
राज्य वर्गीकरण की सबसे ऊँची और व्यापक श्रेणी है। यह सबसे बड़ा समूह होता है जिसमें असंख्य जीव रखे जाते हैं। हर राज्य को आगे कई उप-समूहों में बाँटा जाता है। आधुनिक वर्गीकरण में जीवों को पाँच मुख्य राज्यों में विभाजित किया गया है – Animalia (पशु जगत), Plantae (पादप जगत), Fungi (कवक), Protista (प्रोटिस्टा) और Monera (मोनेरा)। इनमें से Animalia में सभी जानवर, Plantae में सभी पौधे, Fungi में कवक जैसे मशरूम और यीस्ट, Protista में अमीबा और पैरामीशियम जैसे सूक्ष्मजीव और Monera में बैक्टीरिया और सायनोबैक्टीरिया शामिल होते हैं। यह सबसे व्यापक श्रेणी है, इसलिए इसमें जीवों की विविधता सबसे अधिक होती है।
2. संघ (Phylum/Division)
संघ राज्य के बाद का स्तर है और यह राज्य की तुलना में अधिक विशिष्ट होता है। Animalia राज्य में लगभग 35 संघ (phyla) होते हैं। उदाहरण के लिए, Porifera (स्पंज), Arthropoda (कीट-पतंगे, मकड़ी, झींगा), Chordata (रीढ़धारी जीव) आदि। पादप जगत (Plantae) में संघ को Division कहा जाता है। इस स्तर पर जीवों को उनकी प्रमुख शारीरिक विशेषताओं के आधार पर बाँटा जाता है, जैसे रीढ़ की उपस्थिति या अनुपस्थिति, शरीर का संगठन आदि। मनुष्य Chordata संघ का हिस्सा है, क्योंकि उसमें रीढ़ की हड्डी (vertebral column) मौजूद होती है।
3. वर्ग (Class)
वर्ग संघ से अधिक विशिष्ट स्तर है। पहले वर्ग को सबसे सामान्य स्तर माना जाता था, लेकिन अब संघ उससे ऊपर रखा गया है। Animalia राज्य में लगभग 108 वर्ग पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, Mammalia (स्तनधारी), Reptilia (सरीसृप), Aves (पक्षी) और Amphibia (उभयचर)। इस स्तर पर जीवों को उनके और भी विशिष्ट लक्षणों के आधार पर बाँटा जाता है। जैसे स्तनधारी वर्ग के सभी जीव अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं, शरीर पर बाल पाए जाते हैं और ये गर्म रक्त वाले होते हैं। मनुष्य Mammalia वर्ग का सदस्य है।
4. गण (Order)
गण वर्ग से भी अधिक विशिष्ट स्तर है। इसमें एक या अधिक कुल (families) शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, Mammalia वर्ग में लगभग 26 गण (orders) होते हैं। इनमें से Primates गण में मनुष्य, बंदर और गोरिल्ला आते हैं, जबकि Carnivora गण में शेर, बाघ और कुत्ता आते हैं। इस स्तर पर जीवों में और अधिक समानताएँ देखने को मिलती हैं। मनुष्य Primates गण का हिस्सा है।
5. कुल (Family)
कुल गण से अधिक संकीर्ण स्तर है। इसमें कई वंश (Genera) रखे जाते हैं, जिनमें काफी समानता होती है। उदाहरण के लिए, Carnivora गण में Canidae (कुत्ता, भेड़िया, लोमड़ी), Felidae (शेर, बाघ, तेंदुआ) और Ursidae (भालू) जैसे कुल शामिल हैं। इसी तरह, मनुष्य Hominidae कुल में आता है, जिसमें गोरिल्ला और चिंपैंज़ी भी शामिल होते हैं। कुल की विशेषता यह है कि इसके जीवों में संरचनात्मक और आनुवंशिक समानता अधिक होती है।
6. वंश (Genus)
वंश वह स्तर है जिसमें समान प्रजातियों (species) को रखा जाता है। यह प्रजाति से ऊपर और कुल से नीचे की श्रेणी है। यदि किसी वंश में केवल एक ही प्रजाति होती है तो उसे Monotypic Genus कहते हैं, और यदि एक से अधिक प्रजातियाँ होती हैं तो उसे Polytypic Genus कहा जाता है। उदाहरण के लिए, Panthera वंश में शेर (Panthera leo), बाघ (Panthera tigris) और तेंदुआ (Panthera pardus) शामिल हैं। इसी प्रकार, मनुष्य Homo वंश का सदस्य है।
7. प्रजाति (Species)
प्रजाति वर्गीकरण की सबसे छोटी और सबसे विशिष्ट इकाई है। यह उन जीवों का समूह है जो संरचना, आकार और प्रजनन की दृष्टि से इतने समान होते हैं कि वे आपस में प्रजनन करके उपजाऊ संतान पैदा कर सकते हैं। पृथ्वी पर लगभग 8.7 मिलियन (87 लाख) प्रजातियाँ पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य की प्रजाति Homo sapiens है। शेर की प्रजाति Panthera leo, बाघ की प्रजाति Panthera tigris और आम की प्रजाति Mangifera indica है।
| Common Name | Scientific Name | Species | Genus | Family | Order | Class | Phylum | 
|---|---|---|---|---|---|---|---|
| मनुष्य (Human) | Homo sapiens | sapiens | Homo | Hominidae | Primates | Mammalia | Chordata | 
| मेंढक (Frog) | Rana tigrina (Indian Bullfrog) | tigrina | Rana | Ranidae | Anura | Amphibia | Chordata | 
| आम (Mango) | Mangifera indica | indica | Mangifera | Anacardiaceae | Sapindales | Dicotyledonae (Magnoliopsida) | Angiospermae | 
| मोर (Peacock) | Pavo cristatus | cristatus | Pavo | Phasianidae | Galliformes | Aves | Chordata | 
| कुत्ता (Dog) | Canis lupus familiaris | familiaris | Canis | Canidae | Carnivora | Mammalia | Chordata | 
| बिल्ली (Cat) | Felis catus | catus | Felis | Felidae | Carnivora | Mammalia | Chordata | 
| शेर (Lion) | Panthera leo | leo | Panthera | Felidae | Carnivora | Mammalia | Chordata | 
| चीता (Cheetah) | Acinonyx jubatus | jubatus | Acinonyx | Felidae | Carnivora | Mammalia | Chordata | 
| बाघ (Tiger) | Panthera tigris | tigris | Panthera | Felidae | Carnivora | Mammalia | Chordata | 
| सरसों (Mustard) | Brassica campestris / Brassica juncea | campestris / juncea | Brassica | Brassicaceae | Brassicales | Dicotyledonae (Magnoliopsida) | Angiospermae | 
द्विनाम पद्धति
द्विनाम पद्धति (Binomial Nomenclature) जीवों को वैज्ञानिक ढंग से नाम देने की एक मानक प्रणाली है। इसमें हर जीव का नाम दो शब्दों से बना होता है – पहला शब्द उसके वंश (Genus) को और दूसरा शब्द उसकी प्रजाति (Species epithet) को दर्शाता है। इस प्रणाली को 18वीं शताब्दी में कार्ल लीनियस (Carl Linnaeus) ने अपनी पुस्तक Systema Naturae (1735) में प्रस्तुत किया। लीनियस को “आधुनिक टैक्सोनॉमी का जनक” भी कहा जाता है।

प्राचीन काल में जीवों को अलग-अलग क्षेत्रों और भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता था। जैसे शेर को भारत में “सिंह”, अंग्रेजी में “Lion” और फ़्रेंच में “Lionne” कहा जाता है। इससे एक ही जीव के लिए कई नाम हो जाते थे और वैज्ञानिक अध्ययन में भ्रम उत्पन्न होता था। इस समस्या को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक वैश्विक, एकीकृत प्रणाली बनाने की आवश्यकता महसूस की।
इसी आवश्यकता के आधार पर लीनियस ने द्विनाम पद्धति प्रस्तुत की। इस प्रणाली ने जीव विज्ञान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साझा भाषा दी।
द्विनाम पद्धति का स्वरूप
इस प्रणाली में किसी भी जीव का नाम दो भागों में होता है:
- वंश (Genus):
- यह उस जीव का बड़ा समूह है जिसमें कई प्रजातियाँ हो सकती हैं।
 - Genus का नाम हमेशा बड़े अक्षर (Capital letter) से शुरू होता है।
 
 - प्रजाति (Species epithet):
- यह उस जीव की विशिष्ट पहचान है।
 - Species epithet का नाम हमेशा छोटे अक्षर (small letter) से लिखा जाता है।
 
 
उदाहरण:
- Panthera tigris → बाघ (Panthera = वंश, tigris = प्रजाति)
 - Homo sapiens → मनुष्य (Homo = वंश, sapiens = प्रजाति)
 - Rana tigrina → भारतीय बुलफ्रॉग (Rana = वंश, tigrina = प्रजाति)
 
द्विनाम पद्धति के नियम (Rules)
वैज्ञानिकों ने नामकरण के लिए कुछ निश्चित नियम बनाए हैं जिन्हें पूरी दुनिया के जीवविज्ञानी मानते हैं। ये नियम दो अंतरराष्ट्रीय कोड पर आधारित हैं:
- ICBN (International Code of Botanical Nomenclature): पौधों के नामकरण के लिए।
 - ICZN (International Code of Zoological Nomenclature): पशुओं के नामकरण के लिए।
 
महत्वपूर्ण नियम:
- हर वैज्ञानिक नाम लैटिन भाषा या लैटिन रूप में होता है क्योंकि यह भाषा अब “स्थिर” है (बदली नहीं जाती)।
 - नाम हमेशा तिरछे अक्षरों (italics) में लिखा जाता है।
 - हाथ से लिखते समय नाम को रेखांकित (underline) किया जाता है।
 - वंश (Genus) का पहला अक्षर बड़े अक्षर से और प्रजाति (Species) का पहला अक्षर छोटे अक्षर से लिखा जाता है।
 - नाम हमेशा दो ही शब्दों का होना चाहिए – न ज़्यादा, न कम।
 
द्विनाम पद्धति का महत्व
- वैश्विक मान्यता: हर जीव का केवल एक ही वैज्ञानिक नाम होता है जिसे दुनिया भर में स्वीकार किया जाता है।
 - भ्रम से मुक्ति: अलग-अलग स्थानीय नामों से होने वाला भ्रम दूर होता है।
 - विज्ञान में एकरूपता: यह जीव विज्ञान को एक साझा भाषा देता है जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध और अध्ययन आसान होता है।
 - सटीक पहचान: वैज्ञानिक नाम जीव के वंश और प्रजाति दोनों को दर्शाता है, जिससे उस जीव की सही पहचान और उसका विकासीय संबंध समझने में आसानी होती है।
 
अतिरिक्त उदाहरण
- आम (Mango) → Mangifera indica
 - गेंहूँ (Wheat) → Triticum aestivum
 - मक्का (Maize) → Zea mays
 - मोर (Peacock) → Pavo cristatus
 - कुत्ता (Dog) → Canis lupus familiaris
 - बिल्ली (Cat) → Felis catus
 
त्रिनाम पद्धति (Trinomial Nomenclature)
त्रिनाम पद्धति (Trinomial Nomenclature) जीवों को नाम देने की वैज्ञानिक प्रणाली है जिसमें जीव का नाम तीन शब्दों से बना होता है – पहला वंश (Genus), दूसरा प्रजाति (Species) और तीसरा उप-प्रजाति या किस्म (Subspecies/Variety)। द्विनाम पद्धति (Binomial Nomenclature) का विचार कार्ल लीनियस ने दिया था, जबकि त्रिनाम पद्धति का प्रस्ताव Huxley और Strickland ने रखा ताकि उन जीवों की पहचान भी स्पष्ट हो सके जिनकी एक ही प्रजाति के भीतर कई किस्में या उप-प्रजातियाँ होती हैं।

उदाहरण के लिए, Brassica oleracea capitata में Brassica वंश है, oleracea प्रजाति है और capitata उप-प्रजाति (पत्ता गोभी) को दर्शाता है, वहीं Buteo jamaicensis borealis लाल-पूंछ वाले बाज़ की उप-प्रजाति है। इस पद्धति के नियम लगभग द्विनाम पद्धति जैसे ही हैं—नाम लैटिन भाषा में होते हैं, तिरछे अक्षरों (italics) में लिखे जाते हैं या हाथ से लिखते समय रेखांकित (underline) किए जाते हैं, वंश का पहला अक्षर बड़ा और प्रजाति व उप-प्रजाति का पहला अक्षर छोटा लिखा जाता है। इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यह प्रजातियों के अंदर की विविधता को पहचानने और उन्हें विश्व स्तर पर एक समान नाम देने में मदद करता है।
पाँच साम्राज्य वर्गीकरण (Five-Kingdom Classification)
जीवों का वर्गीकरण सबसे पहले कैरेलस लीनियस (Carolus Linnaeus) ने दो साम्राज्यों – Plantae और Animalia – में किया था। यह प्रणाली बहुत लंबे समय तक चली, लेकिन इसमें कई समस्याएँ थीं। इसमें प्रोकैरियोटिक (Prokaryotic) और यूकैरियोटिक (Eukaryotic), एककोशिकीय और बहुकोशिकीय, तथा प्रकाश-संश्लेषी (Photosynthetic) और परपोषी (Heterotrophic) जीवों में कोई स्पष्ट अंतर नहीं था। जैसे कवक (Fungi) को पौधों में शामिल कर दिया गया था क्योंकि उनमें कोशिका भित्ति (Cell wall) होती है, जबकि वास्तव में वे पौधों से बिल्कुल भिन्न हैं।
इस भ्रम को दूर करने के लिए आर.एच. व्हिटेकर (R.H. Whittaker) ने 1969 में पाँच साम्राज्यों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया। यह वर्गीकरण जीवों की पोषण की विधि, शरीर की संरचना, कोशिका का प्रकार, प्रजनन की विधि और विकासीय संबंधों पर आधारित था। इस प्रणाली के अनुसार सभी जीवों को पाँच साम्राज्यों में बाँटा गया – Monera, Protista, Fungi, Plantae और Animalia।
1. साम्राज्य मोनेरा (Kingdom Monera)
- इस साम्राज्य में सभी प्रोकैरियोटिक जीव आते हैं, जैसे बैक्टीरिया और सायनोबैक्टीरिया।
 - ये सूक्ष्मदर्शी (Microscopic) होते हैं और इनकी कोशिका भित्ति अमीनो अम्ल और पॉलीसैकराइड से बनी होती है।
 - ये स्वपोषी (Autotrophic) भी हो सकते हैं और परपोषी (Heterotrophic) भी।
 - स्वपोषी जीव प्रकाश-संश्लेषी या रासायनिक संश्लेषी (Chemosynthetic) हो सकते हैं।
 - परपोषी जीव परजीवी (Parasitic) या मृतपोषी (Saprophytic) हो सकते हैं।
 - बैक्टीरिया को उनके आकार के आधार पर चार प्रकारों में बाँटा जाता है – कोकस (Coccus – गोल), बैसिलस (Bacillus – डंडीनुमा), स्पिरिलम (Spirillum – सर्पिल) और विब्रियो (Vibrio – कॉमा आकार)।
 
बाद में Monera को दो उप-समूहों में बाँटा गया – Archaebacteria और Eubacteria।
2. साम्राज्य प्रोटिस्टा (Kingdom Protista)
- इसमें सभी एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव रखे गए हैं।
 - इनमें गतिशीलता के लिए सिलीया (Cilia) और फ्लैजेला (Flagella) पाए जाते हैं।
 - इनमें यौन प्रजनन (Sexual reproduction) कोशिकाओं के संलयन और ज़ाइगोट के निर्माण द्वारा होता है।
 
प्रोटिस्टा के उप-समूह:
- क्राइसॉफाइट्स (Chrysophytes): इनमें डायटम्स और गोल्डन अल्गी (Golden algae) आते हैं।
 - डाइनोफ्लैजिलेट्स (Dinoflagellates): ये प्रायः प्रकाश-संश्लेषी होते हैं और समुद्री जल में पाए जाते हैं। इनका रंग कोशिकाओं में पाए जाने वाले वर्णक पर निर्भर करता है।
 - युग्लीनॉइड्स (Euglenoids): इनकी कोशिका भित्ति नहीं होती, इसके स्थान पर एक प्रोटीन-समृद्ध परत पेलिकल (Pellicle) होती है।
 - स्लाइम मोल्ड्स (Slime moulds): ये मृत कार्बनिक पदार्थ पर पोषण लेने वाले (Saprophytic) जीव होते हैं।
 - प्रोटोज़ोआ (Protozoans): ये परपोषी होते हैं और परजीवी या शिकारी के रूप में जीवित रहते हैं।
 

3. साम्राज्य कवक (Kingdom Fungi)
- इसमें यीस्ट, मोल्ड और मशरूम जैसे जीव आते हैं।
 - अधिकांश कवक फिलामेंटस (Filamentous) होते हैं और इनका शरीर हाइफी (Hyphae) नामक तंतु जैसी संरचनाओं से बना होता है।
 - हाइफी का जाल माइसेलियम (Mycelium) कहलाता है।
 - कुछ हाइफी बहुनाभिकीय (Coenocytic) होते हैं और कुछ में सेप्टा (Septate) होता है।
 - इनकी कोशिका भित्ति काइटिन (Chitin) और पॉलीसैकराइड से बनी होती है।
 - अधिकांश कवक मृतपोषी (Saprophytic) और परपोषी (Heterotrophic) होते हैं, कुछ परजीवी (Parasitic) और कुछ सहजीवी (Symbiotic) भी पाए जाते हैं।
 - सहजीवी कवक जैसे लाइकेन (Lichen) शैवाल के साथ और माइकोराइज़ा (Mycorrhiza) उच्च पौधों की जड़ों के साथ रहते हैं।
 
4. साम्राज्य पादप (Kingdom Plantae)
- इसमें सभी यूकैरियोटिक प्रकाश-संश्लेषी जीव आते हैं।
 - अधिकांश स्वपोषी (Autotrophic) होते हैं, हालांकि कुछ अपवाद स्वरूप परपोषी भी हो सकते हैं।
 - इनकी कोशिका भित्ति मुख्य रूप से सेल्यूलोज़ से बनी होती है।
 - पौधों का जीवन चक्र द्विगुणित (Diploid) और एकगुणित (Haploid) अवस्थाओं के बीच बदलता रहता है। इसे पीढ़ियों का परिवर्तन (Alternation of Generations) कहते हैं।
 - विभिन्न समूहों में डिप्लॉइड और हैप्लॉइड अवस्थाओं की लंबाई अलग-अलग हो सकती है।
 
5. साम्राज्य जन्तु (Kingdom Animalia)
- इसमें सभी बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक परपोषी जीव आते हैं।
 - इनकी कोशिका भित्ति अनुपस्थित होती है।
 - इनका पोषण होलोज़ोइक (Holozoic) होता है, जिसमें भोजन को निगलकर (Ingestion) आंतरिक गुहा (Internal cavity) में पचाया जाता है।
 - अधिकांश जन्तु गति करने में सक्षम होते हैं।
 - इनका प्रजनन मुख्यतः यौन विधि से होता है।
 - भोजन के लिए ये सीधे या परोक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं।